Mansarovar - Part 5-8 (Hindi)

Fiction & Literature, Literary Theory & Criticism, Literary
Cover of the book Mansarovar - Part 5-8 (Hindi) by Premchand, Sai ePublications & Sai Shop
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Author: Premchand ISBN: 9781310604454
Publisher: Sai ePublications & Sai Shop Publication: September 28, 2014
Imprint: Smashwords Edition Language: Hindi
Author: Premchand
ISBN: 9781310604454
Publisher: Sai ePublications & Sai Shop
Publication: September 28, 2014
Imprint: Smashwords Edition
Language: Hindi

मानसरोवर - भाग 5
मंदिर | निमंत्रण | रामलीला | कामना तरु | हिंसा परम धर्म | बहिष्कार | चोरी | लांछन | सती | कजाकी | आसुँओं की होली | अग्नि-समाधि | सुजान भगत | पिसनहारी का कुआँ | सोहाग का शव | आत्म-संगीत | एक्ट्रेस | ईश्वरीय न्याय | ममता | मंत्र | प्रायश्चित | कप्तान साहब | इस्तीफा |

मानसरोवर - भाग 6
यह मेरी मातृभूमि है | राजा हरदौल | त्यागी का प्रेम | रानी सारन्धा | शाप | मर्यादा की वेदी | मृत्यु के पीछे | पाप का अग्निकुंड | आभूषण | जुगनू की चमक | गृह-दाह | धोखा | लाग-डाट | अमावस्या की रात्रि | चकमा | पछतावा | आप-बीती | राज्य-भक्त | अधिकार-चिन्ता | दुराशा (प्रहसन)

मानसरोवर - भाग 7
जेल | पत्नी से पति | शराब की दुकान | जुलूस | मैकू | समर-यात्रा | शान्ति | बैंक का दिवाला | आत्माराम | दुर्गा का मन्दिर | बड़े घर की बेटी | पंच-परमेश्वर | शंखनाद | जिहाद | फातिहा | वैर का अंत | दो भाई | महातीर्थ | विस्मृति | प्रारब्ध | सुहाग की साड़ी | लोकमत का सम्मान | नाग-पूजा

मानसरोवर - भाग 8
खून सफेद | गरीब की हाय | बेटी का धन | धर्मसंकट | सेवा-मार्ग | शिकारी राजकुमार | बलिदान | बोध | सच्चाई का उपहार | ज्वालामुखी | पशु से मनुष्य | मूठ | ब्रह्म का स्वांग | विमाता | बूढ़ी काकी | हार की जीत | दफ्तरी | विध्वंस | स्वत्व-रक्षा | पूर्व-संस्कार | दुस्साहस | बौड़म | गुप्तधन | आदर्श विरोध | विषम समस्या | अनिष्ट शंका | सौत | सज्जनता का दंड | नमक का दारोगा | उपदेश | परीक्षा
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मातृ-प्रेम, तुझे धान्य है ! संसार में और जो कुछ है, मिथ्या है, निस्सार है। मातृ-प्रेम ही सत्य है, अक्षय है, अनश्वर है। तीन दिन से सुखिया के मुँह में न अन्न का एक दाना गया था, न पानी की एक बूँद। सामने पुआल पर माता का नन्हा-सा लाल पड़ा कराह रहा था। आज तीन दिन से उसने आँखें न खोली थीं। कभी उसे गोद में उठा लेती, कभी पुआल पर सुला देती। हँसते-खेलते बालक को अचानक क्या हो गया, यह कोई नहीं बताता। ऐसी दशा में माता को भूख और प्यास कहाँ ? एक बार पानी का एक घूँट मुँह में लिया था; पर कंठ के नीचे न ले जा सकी। इस दुखिया की विपत्ति का वारपार न था। साल भर के भीतर दो बालक गंगा जी की गोद में सौंप चुकी थी। पतिदेव पहले ही सिधार चुके थे। अब उस अभागिनी के जीवन का आधार, अवलम्ब, जो कुछ था, यही बालक था। हाय ! क्या ईश्वर इसे भी इसकी गोद से छीन लेना चाहते हैं ?

यह कल्पना करते ही माता की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगते थे। इस बालक को वह क्षण भर के लिए भी अकेला न छोड़ती थी। उसे साथ लेकर घास छीलने जाती। घास बेचने बाजार जाती तो बालक गोद में होता। उसके लिए उसने नन्ही-सी खुरपी और नन्ही-सी खाँची बनवा दी थी। जियावन माता के साथ घास छीलता और गर्व से कहता, ‘अम्माँ, हमें भी बड़ी-सी खुरपी बनवा दो, हम बहुत-सी घास छीलेंगे,तुम द्वारे माची पर बैठी रहना, अम्माँ,मैं घास बेच लाऊंगा।

‘मां पूछती- ‘मेरे लिए क्या-क्या लाओगे, बेटा ? ‘

जियावन लाल-लाल साड़ियों का वादा करता। अपने लिए बहुत-सा गुड़ लाना चाहता था। वे ही भोली-भोली बातें इस समय याद आ-आकर माता के हृदय को शूल के समान बेध रही थीं। जो बालक को देखता, यही कहता कि किसी की डीठ है; पर किसकी डीठ है ? इस विधवा का भी संसार में कोई वैरी है ? अगर उसका नाम मालूम हो जाता, तो सुखिया जाकर उसके चरणों पर गिर पड़ती और बालक को उसकी गोद में रख देती। क्या उसका हृदय दया से न पिघल जाता ? पर नाम कोई नहीं बताता। हाय ! किससे पूछे, क्या करे ?

तीन पहर रात बीत चुकी थी। सुखिया का चिंता-व्यथित चंचल मन कोठे-कोठे दौड़ रहा था। किस देवी की शरण जाए, किस देवता की मनौती करे, इसी सोच में पड़े-पड़े उसे एक झपकी आ गयी। क्या देखती है कि उसका स्वामी आकर बालक के सिरहाने खड़ा हो जाता है और बालक के सिर पर हाथ फेर कर कहता है, ‘रो मत, सुखिया ! तेरा बालक अच्छा हो जायगा। कल ठाकुर जी की पूजा कर दे, वही तेरे सहायक होंगे।‘ यह कहकर वह चला गया। सुखिया की आँख खुल गयी। अवश्य ही उसके पतिदेव आये थे। इसमें सुखिया को ज़रा भी संदेह न हुआ। उन्हें अब भी मेरी सुधि है, यह सोच कर उसका हृदय आशा से परिप्लावित हो उठा। पति के प्रति श्रृद्धा और प्रेम से उसकी आँखें सजग हो गयीं। उसने बालक को गोद में उठा लिया और आकाश की ओर ताकती हुई बोली, ‘भगवान ! मेरा बालक अच्छा हो जाए, तो मैं तुम्हारी पूजा करूँगी। अनाथ विधवा पर दया करो।‘

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मानसरोवर - भाग 5
मंदिर | निमंत्रण | रामलीला | कामना तरु | हिंसा परम धर्म | बहिष्कार | चोरी | लांछन | सती | कजाकी | आसुँओं की होली | अग्नि-समाधि | सुजान भगत | पिसनहारी का कुआँ | सोहाग का शव | आत्म-संगीत | एक्ट्रेस | ईश्वरीय न्याय | ममता | मंत्र | प्रायश्चित | कप्तान साहब | इस्तीफा |

मानसरोवर - भाग 6
यह मेरी मातृभूमि है | राजा हरदौल | त्यागी का प्रेम | रानी सारन्धा | शाप | मर्यादा की वेदी | मृत्यु के पीछे | पाप का अग्निकुंड | आभूषण | जुगनू की चमक | गृह-दाह | धोखा | लाग-डाट | अमावस्या की रात्रि | चकमा | पछतावा | आप-बीती | राज्य-भक्त | अधिकार-चिन्ता | दुराशा (प्रहसन)

मानसरोवर - भाग 7
जेल | पत्नी से पति | शराब की दुकान | जुलूस | मैकू | समर-यात्रा | शान्ति | बैंक का दिवाला | आत्माराम | दुर्गा का मन्दिर | बड़े घर की बेटी | पंच-परमेश्वर | शंखनाद | जिहाद | फातिहा | वैर का अंत | दो भाई | महातीर्थ | विस्मृति | प्रारब्ध | सुहाग की साड़ी | लोकमत का सम्मान | नाग-पूजा

मानसरोवर - भाग 8
खून सफेद | गरीब की हाय | बेटी का धन | धर्मसंकट | सेवा-मार्ग | शिकारी राजकुमार | बलिदान | बोध | सच्चाई का उपहार | ज्वालामुखी | पशु से मनुष्य | मूठ | ब्रह्म का स्वांग | विमाता | बूढ़ी काकी | हार की जीत | दफ्तरी | विध्वंस | स्वत्व-रक्षा | पूर्व-संस्कार | दुस्साहस | बौड़म | गुप्तधन | आदर्श विरोध | विषम समस्या | अनिष्ट शंका | सौत | सज्जनता का दंड | नमक का दारोगा | उपदेश | परीक्षा
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मातृ-प्रेम, तुझे धान्य है ! संसार में और जो कुछ है, मिथ्या है, निस्सार है। मातृ-प्रेम ही सत्य है, अक्षय है, अनश्वर है। तीन दिन से सुखिया के मुँह में न अन्न का एक दाना गया था, न पानी की एक बूँद। सामने पुआल पर माता का नन्हा-सा लाल पड़ा कराह रहा था। आज तीन दिन से उसने आँखें न खोली थीं। कभी उसे गोद में उठा लेती, कभी पुआल पर सुला देती। हँसते-खेलते बालक को अचानक क्या हो गया, यह कोई नहीं बताता। ऐसी दशा में माता को भूख और प्यास कहाँ ? एक बार पानी का एक घूँट मुँह में लिया था; पर कंठ के नीचे न ले जा सकी। इस दुखिया की विपत्ति का वारपार न था। साल भर के भीतर दो बालक गंगा जी की गोद में सौंप चुकी थी। पतिदेव पहले ही सिधार चुके थे। अब उस अभागिनी के जीवन का आधार, अवलम्ब, जो कुछ था, यही बालक था। हाय ! क्या ईश्वर इसे भी इसकी गोद से छीन लेना चाहते हैं ?

यह कल्पना करते ही माता की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगते थे। इस बालक को वह क्षण भर के लिए भी अकेला न छोड़ती थी। उसे साथ लेकर घास छीलने जाती। घास बेचने बाजार जाती तो बालक गोद में होता। उसके लिए उसने नन्ही-सी खुरपी और नन्ही-सी खाँची बनवा दी थी। जियावन माता के साथ घास छीलता और गर्व से कहता, ‘अम्माँ, हमें भी बड़ी-सी खुरपी बनवा दो, हम बहुत-सी घास छीलेंगे,तुम द्वारे माची पर बैठी रहना, अम्माँ,मैं घास बेच लाऊंगा।

‘मां पूछती- ‘मेरे लिए क्या-क्या लाओगे, बेटा ? ‘

जियावन लाल-लाल साड़ियों का वादा करता। अपने लिए बहुत-सा गुड़ लाना चाहता था। वे ही भोली-भोली बातें इस समय याद आ-आकर माता के हृदय को शूल के समान बेध रही थीं। जो बालक को देखता, यही कहता कि किसी की डीठ है; पर किसकी डीठ है ? इस विधवा का भी संसार में कोई वैरी है ? अगर उसका नाम मालूम हो जाता, तो सुखिया जाकर उसके चरणों पर गिर पड़ती और बालक को उसकी गोद में रख देती। क्या उसका हृदय दया से न पिघल जाता ? पर नाम कोई नहीं बताता। हाय ! किससे पूछे, क्या करे ?

तीन पहर रात बीत चुकी थी। सुखिया का चिंता-व्यथित चंचल मन कोठे-कोठे दौड़ रहा था। किस देवी की शरण जाए, किस देवता की मनौती करे, इसी सोच में पड़े-पड़े उसे एक झपकी आ गयी। क्या देखती है कि उसका स्वामी आकर बालक के सिरहाने खड़ा हो जाता है और बालक के सिर पर हाथ फेर कर कहता है, ‘रो मत, सुखिया ! तेरा बालक अच्छा हो जायगा। कल ठाकुर जी की पूजा कर दे, वही तेरे सहायक होंगे।‘ यह कहकर वह चला गया। सुखिया की आँख खुल गयी। अवश्य ही उसके पतिदेव आये थे। इसमें सुखिया को ज़रा भी संदेह न हुआ। उन्हें अब भी मेरी सुधि है, यह सोच कर उसका हृदय आशा से परिप्लावित हो उठा। पति के प्रति श्रृद्धा और प्रेम से उसकी आँखें सजग हो गयीं। उसने बालक को गोद में उठा लिया और आकाश की ओर ताकती हुई बोली, ‘भगवान ! मेरा बालक अच्छा हो जाए, तो मैं तुम्हारी पूजा करूँगी। अनाथ विधवा पर दया करो।‘

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