मृतलाल नागर हिन्दी के उन गिने-चुने मूर्धन्य लेखकों में हैं जिन्होंने जो कुछ लिखा है वह साहित्य की निधि बन गया है। सभी प्रचलित वादों से निर्लिप्त उनका कृतित्व और व्यक्तित्व कुछ अपनी ही प्रभा से ज्योतित है उन्होंने जीवन में गहरे पैठकर कुछ मोती निकाले हैं और उन्हें अपनी रचनाओं में बिखेर दिया है उपन्यासों की तरह उन्होंने कहानियाँ भी कम ही लिखी हैं परन्तु सभी कहानियाँ उनकी अपनी विशिष्ठ जीवन-दृष्टि और सहज मानवीयता से ओतप्रोत होने के कारण साहित्य की मूल्यवान सम्पत्ति हैं।
मृतलाल नागर हिन्दी के उन गिने-चुने मूर्धन्य लेखकों में हैं जिन्होंने जो कुछ लिखा है वह साहित्य की निधि बन गया है। सभी प्रचलित वादों से निर्लिप्त उनका कृतित्व और व्यक्तित्व कुछ अपनी ही प्रभा से ज्योतित है उन्होंने जीवन में गहरे पैठकर कुछ मोती निकाले हैं और उन्हें अपनी रचनाओं में बिखेर दिया है उपन्यासों की तरह उन्होंने कहानियाँ भी कम ही लिखी हैं परन्तु सभी कहानियाँ उनकी अपनी विशिष्ठ जीवन-दृष्टि और सहज मानवीयता से ओतप्रोत होने के कारण साहित्य की मूल्यवान सम्पत्ति हैं।