आधुनिक हिन्दी कहानी के सफर में भीष्म साहनी एक महत्वपूर्ण नाम है। उनकी सर्वाधिक प्रिय कहानियों के इस संकलन में जीवन और समाज से गहरे जुड़े प्रश्नों को प्रस्तुत किया गया है। इनमें से अनेक कहानियाँ बेहद चर्चित हुई हैं। ‘आधुनिकता-बोध की जिस कसौटी पर कहानी को परखा जाने लगा है उससे मैं सहमत नहीं हूं। जहां कहानी जीवन से साक्षात्कार कराती है, उसके भीतर पाये जाने वाले अन्तर्विरोधों से साक्षात् कराती है, वहां वह अपने आप ही समय और युग का बोध भी कराती है। पर यदि आधुनिक ‘भाव-बोध’ को साहित्य का विशिष्ट गुण मान लिया जाये तो हम दिग्भ्रमित ही होंगे। यदि कहानी में अवसाद है, मूल्यहीनता का भाव है, अनास्था है तो वह कहानी आधुनिक, और…चूंकि आधुनिक है, इसलिए उत्कृष्ट है, इस प्रकार का तर्क मुझे प्रभावित नहीं करता। अपना भाग्य ढोते हुए इंसान का चित्र आधुनिक है, पर अपने भाग्य से जूझते हुए इंसान का चित्र असंगत है, अनास्था आधुनिक है, आस्था असंगत है, मृत्युबोध आधुनिक है, जीवन-बोध असंगत और निरर्थक है, इस प्रकार के तर्क के आधार पर साहित्य को परखना और उसके गुण-दोष निकालना जिन्दगी को भी और साहित्य को भी टेढ़े शीशे में से देखने की कोशिश है।
आधुनिक हिन्दी कहानी के सफर में भीष्म साहनी एक महत्वपूर्ण नाम है। उनकी सर्वाधिक प्रिय कहानियों के इस संकलन में जीवन और समाज से गहरे जुड़े प्रश्नों को प्रस्तुत किया गया है। इनमें से अनेक कहानियाँ बेहद चर्चित हुई हैं। ‘आधुनिकता-बोध की जिस कसौटी पर कहानी को परखा जाने लगा है उससे मैं सहमत नहीं हूं। जहां कहानी जीवन से साक्षात्कार कराती है, उसके भीतर पाये जाने वाले अन्तर्विरोधों से साक्षात् कराती है, वहां वह अपने आप ही समय और युग का बोध भी कराती है। पर यदि आधुनिक ‘भाव-बोध’ को साहित्य का विशिष्ट गुण मान लिया जाये तो हम दिग्भ्रमित ही होंगे। यदि कहानी में अवसाद है, मूल्यहीनता का भाव है, अनास्था है तो वह कहानी आधुनिक, और…चूंकि आधुनिक है, इसलिए उत्कृष्ट है, इस प्रकार का तर्क मुझे प्रभावित नहीं करता। अपना भाग्य ढोते हुए इंसान का चित्र आधुनिक है, पर अपने भाग्य से जूझते हुए इंसान का चित्र असंगत है, अनास्था आधुनिक है, आस्था असंगत है, मृत्युबोध आधुनिक है, जीवन-बोध असंगत और निरर्थक है, इस प्रकार के तर्क के आधार पर साहित्य को परखना और उसके गुण-दोष निकालना जिन्दगी को भी और साहित्य को भी टेढ़े शीशे में से देखने की कोशिश है।