Odiya Bhasha ki Pratinidhi Kahaniya

Nonfiction, Social & Cultural Studies, Social Science, Human Services
Cover of the book Odiya Bhasha ki Pratinidhi Kahaniya by Dinesh Kumar Mali, onlinegatha
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Author: Dinesh Kumar Mali ISBN: 1230000865142
Publisher: onlinegatha Publication: December 30, 2015
Imprint: Language: English
Author: Dinesh Kumar Mali
ISBN: 1230000865142
Publisher: onlinegatha
Publication: December 30, 2015
Imprint:
Language: English

हरि सिंह सरकारी कामकाजों में अब तक कई छोटे-बड़े कस्बों में स्थानांतरित हो चुके थे। अब वह दस साल से कटक हेड पोस्ट-ऑफिस में काम कर रहे हैं। अच्छी कार्यशैली होने के कारण उन्हें प्रमोशन मिलते रहे। अब वह हेड चपरासी हैं। मासिक वेतन नौ रूपए। कटक शहर में सब कुछ खरीदना पड़ता है। आग जलाने के लिए माचिस की पेटी भी खरीदनी पड़ती थी। पेट काटकर जितना भी बचाओ, मगर पाँच रूपए से कम खर्च नहीं आता था। किसी भी हालत में घर में कम से कम चार रूपए नहीं भेजने से नहीं चलता था। घर में पत्नी और आठ साल का बेटा था गोपाल। छोटे से गाँव की जगह थी। इसलिए चार रूपए में जैसे-तैसे काम चल जाता था। अगर चार रूपए से एक पैसा कम हुआ तो मुश्किल हो जाती थी । गोपाल माध्यमिक विद्यालय में पढ़ रहा था। स्कूल की फीस महीने में दो आने थी। स्कूल फीस के अलावा किताबें खरीदने के लिए कुछ ज्यादा पैसे लग जाते थे। जब कुछ अतिरिक्त खर्च आ जाता था तो वह महीना मुश्किल से गुजरता था। कभी- कभार बूढ़े को भूखा तक रहना पड़ता था। वह भूखा रहे तो कोई बात नहीं, मगर उसके बेटे की पढ़ाई तो चल रही थी।
एक दिन पोस्ट मास्टर सर्विस बुक खोलकर बतलाने लगे, “हरि सिंह, तुम पचपन साल के हो गए हो. अब तुम्हें पेंशन मिलेगी। अब तुम नौकरी में नहीं रह सकोगे।”
सिंह के सिर पर वज्रपात हो गया। क्या करेगा ? घर संसार कैसे चलेगा ? घर की बात छोड़ो, गोपाल की पढ़ाई ठप्प हो जाएगी। जब से गोपाल पैदा हुआ है तब से हरि सिंह ने मन में एक सपना संजोकर रखा है - गोपाल, कस्बे के पोस्ट ऑफिस में सब पोस्ट-मास्टर होगा - कम से कम गाँव में पोस्ट-मास्टर तो होगा ही ।
परंतु थोड़ी सी अंग्रेजी नहीं आने से नौकरी मिलना मुश्किल है। कस्बे में अंग्रेजी पढ़ने की व्यवस्था नहीं है। इसलिए कटक भेजकर उसे पढ़ाई करवाना उचित होगा। अगर नौकरी खत्म हो गई तो उसका सपना चूर-चूर हो जाएगा. यही बात सोच-सोचकर उसका शरीर शुष्क लकड़ी की तरह हो गया था। रात को आँखों से नींद गायब हो गई थी।
हरि सिंह के ऊपर पोस्ट-मास्टर की मेहरबानी थी। उनके घर में नौकर होते हुए भी ऑफिस का काम खत्म करने के बाद शाम को हरि सिंह पोस्ट-मास्टर के घर जाकर कुछ काम कर लेता था। शाम को आराम कुर्सी में बैठकर पोस्ट-मास्टर अंग्रेजी समाचार पढ़ते समय तंबाकू की चिलम बनाता था। वह जैसे चिलम तैयार करता था, कोई नहीं कर पाता था। एक दिन हरि सिंह ने चिलम तैयार कर के बाबू के सामने रखी । बाबू के मुँह से इंजिन की तरह भक-भक करके धुंआ निकलता था और नशे से आँखों की पलकें गिर जाती थी। तब हरि सिंह को लगा, यह उचित समय है। हरि सिंह ने पोस्ट-मास्टरजी को साष्टांग दंडवत करते हुए हाथ जोड़कर विनीत भाव से अपने दुख-दर्द को उनके सामने रखा। गोपाल के लिए उसने जो सपना बुना था, उसे भी बताना नहीं भूला। पोस्ट- मास्टर बाबू तन्द्रावस्था में थे। वे गंभीर मुद्रा में बोले, “ठीक है, एक आवेदन-पत्र भरकर दे देना।”

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हरि सिंह सरकारी कामकाजों में अब तक कई छोटे-बड़े कस्बों में स्थानांतरित हो चुके थे। अब वह दस साल से कटक हेड पोस्ट-ऑफिस में काम कर रहे हैं। अच्छी कार्यशैली होने के कारण उन्हें प्रमोशन मिलते रहे। अब वह हेड चपरासी हैं। मासिक वेतन नौ रूपए। कटक शहर में सब कुछ खरीदना पड़ता है। आग जलाने के लिए माचिस की पेटी भी खरीदनी पड़ती थी। पेट काटकर जितना भी बचाओ, मगर पाँच रूपए से कम खर्च नहीं आता था। किसी भी हालत में घर में कम से कम चार रूपए नहीं भेजने से नहीं चलता था। घर में पत्नी और आठ साल का बेटा था गोपाल। छोटे से गाँव की जगह थी। इसलिए चार रूपए में जैसे-तैसे काम चल जाता था। अगर चार रूपए से एक पैसा कम हुआ तो मुश्किल हो जाती थी । गोपाल माध्यमिक विद्यालय में पढ़ रहा था। स्कूल की फीस महीने में दो आने थी। स्कूल फीस के अलावा किताबें खरीदने के लिए कुछ ज्यादा पैसे लग जाते थे। जब कुछ अतिरिक्त खर्च आ जाता था तो वह महीना मुश्किल से गुजरता था। कभी- कभार बूढ़े को भूखा तक रहना पड़ता था। वह भूखा रहे तो कोई बात नहीं, मगर उसके बेटे की पढ़ाई तो चल रही थी।
एक दिन पोस्ट मास्टर सर्विस बुक खोलकर बतलाने लगे, “हरि सिंह, तुम पचपन साल के हो गए हो. अब तुम्हें पेंशन मिलेगी। अब तुम नौकरी में नहीं रह सकोगे।”
सिंह के सिर पर वज्रपात हो गया। क्या करेगा ? घर संसार कैसे चलेगा ? घर की बात छोड़ो, गोपाल की पढ़ाई ठप्प हो जाएगी। जब से गोपाल पैदा हुआ है तब से हरि सिंह ने मन में एक सपना संजोकर रखा है - गोपाल, कस्बे के पोस्ट ऑफिस में सब पोस्ट-मास्टर होगा - कम से कम गाँव में पोस्ट-मास्टर तो होगा ही ।
परंतु थोड़ी सी अंग्रेजी नहीं आने से नौकरी मिलना मुश्किल है। कस्बे में अंग्रेजी पढ़ने की व्यवस्था नहीं है। इसलिए कटक भेजकर उसे पढ़ाई करवाना उचित होगा। अगर नौकरी खत्म हो गई तो उसका सपना चूर-चूर हो जाएगा. यही बात सोच-सोचकर उसका शरीर शुष्क लकड़ी की तरह हो गया था। रात को आँखों से नींद गायब हो गई थी।
हरि सिंह के ऊपर पोस्ट-मास्टर की मेहरबानी थी। उनके घर में नौकर होते हुए भी ऑफिस का काम खत्म करने के बाद शाम को हरि सिंह पोस्ट-मास्टर के घर जाकर कुछ काम कर लेता था। शाम को आराम कुर्सी में बैठकर पोस्ट-मास्टर अंग्रेजी समाचार पढ़ते समय तंबाकू की चिलम बनाता था। वह जैसे चिलम तैयार करता था, कोई नहीं कर पाता था। एक दिन हरि सिंह ने चिलम तैयार कर के बाबू के सामने रखी । बाबू के मुँह से इंजिन की तरह भक-भक करके धुंआ निकलता था और नशे से आँखों की पलकें गिर जाती थी। तब हरि सिंह को लगा, यह उचित समय है। हरि सिंह ने पोस्ट-मास्टरजी को साष्टांग दंडवत करते हुए हाथ जोड़कर विनीत भाव से अपने दुख-दर्द को उनके सामने रखा। गोपाल के लिए उसने जो सपना बुना था, उसे भी बताना नहीं भूला। पोस्ट- मास्टर बाबू तन्द्रावस्था में थे। वे गंभीर मुद्रा में बोले, “ठीक है, एक आवेदन-पत्र भरकर दे देना।”

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