Author: | Ram Kishan | ISBN: | 1230000862868 |
Publisher: | onlinegatha | Publication: | December 29, 2015 |
Imprint: | ebook | Language: | English |
Author: | Ram Kishan |
ISBN: | 1230000862868 |
Publisher: | onlinegatha |
Publication: | December 29, 2015 |
Imprint: | ebook |
Language: | English |
व्यंग्य रचना के क्षेत्र में एक युवा रचनाकार है। उनकी रचनाएं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के विभिन्न समाचार पत्रों में छपती रही है। उनके व्यंग्य में मार भी है तो सहलाहट भी। यहीं वजह है कि वे तीखे से तीखे विषय पर अपना आक्रोश संयमित रखते है। वे शब्दों के साथ खेलते नही अपितु उनमें सार्थकता खोजते है।
उनके यत्र-तत्र-सर्वत्र बिखरे हुए व्यंग्य एक साथ प्रकाशन के लिए उनसे कहा जाता रहा, पर वह उनके विखरे रहने के आनन्द में ही अभिभूत रहे। उनके शब्दों में : बड़े बड़े बरगद अभी अपने नीचे घास-फूस उगने देने में सेंशर लगाये हुए है, मेरा तो काम इतना भर है कि रोज मर्रा की समस्याओं पर दो-चार शब्दों के साथ आंखमिचौली किया जाय। उनकी अब तक जितनी भी रचनाएं आर्इ है वह अखबार और मैगजीन के माध्यम से ही। व्यंग्य के क्षेत्र में संकलन उनका पहला प्रयास है। मुझे लगता है कि उनमें युवा जोश और नवीन जमीन उकेरने का सत्साहस कूट कूट कर भरा है।
व्यंग्य रचना के क्षेत्र में एक युवा रचनाकार है। उनकी रचनाएं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के विभिन्न समाचार पत्रों में छपती रही है। उनके व्यंग्य में मार भी है तो सहलाहट भी। यहीं वजह है कि वे तीखे से तीखे विषय पर अपना आक्रोश संयमित रखते है। वे शब्दों के साथ खेलते नही अपितु उनमें सार्थकता खोजते है।
उनके यत्र-तत्र-सर्वत्र बिखरे हुए व्यंग्य एक साथ प्रकाशन के लिए उनसे कहा जाता रहा, पर वह उनके विखरे रहने के आनन्द में ही अभिभूत रहे। उनके शब्दों में : बड़े बड़े बरगद अभी अपने नीचे घास-फूस उगने देने में सेंशर लगाये हुए है, मेरा तो काम इतना भर है कि रोज मर्रा की समस्याओं पर दो-चार शब्दों के साथ आंखमिचौली किया जाय। उनकी अब तक जितनी भी रचनाएं आर्इ है वह अखबार और मैगजीन के माध्यम से ही। व्यंग्य के क्षेत्र में संकलन उनका पहला प्रयास है। मुझे लगता है कि उनमें युवा जोश और नवीन जमीन उकेरने का सत्साहस कूट कूट कर भरा है।