Vikramorvasiyam

Fiction & Literature, Short Stories, Literary
Cover of the book Vikramorvasiyam by Kalidas, Sai ePublications
View on Amazon View on AbeBooks View on Kobo View on B.Depository View on eBay View on Walmart
Author: Kalidas ISBN: 9781329909304
Publisher: Sai ePublications Publication: May 11, 2017
Imprint: Sai ePublications Language: Hindi
Author: Kalidas
ISBN: 9781329909304
Publisher: Sai ePublications
Publication: May 11, 2017
Imprint: Sai ePublications
Language: Hindi

एक बार देवलोक की परम सुंदरी अप्सरा उर्वशी अपनी सखियों के साथ कुबेर के भवन से लौट रही थी। मार्ग में केशी दैत्य ने उन्हें देख लिया और तब उसे उसकी सखी चित्रलेखा सहित वह बीच रास्ते से ही पकड़ कर ले गया।

यह देखकर दूसरी अप्सराएँ सहायता के लिए पुकारने लगीं, "आर्यों! जो कोई भी देवताओं का मित्र हो और आकाश में आ-जा सके, वह आकर हमारी रक्षा करें।" उसी समय प्रतिष्ठान देश के राजा पुरुरवा भगवान सूर्य की उपासना करके उधर से लौट रहे थे। उन्होंने यह करूण पुकार सुनी तो तुरंत अप्सराओं के पास जा पहुँचे। उन्हें ढाढ़स बँधाया और जिस ओर वह दुष्ट दैत्य उर्वशी को ले गया था, उसी ओर अपना रथ हाँकने की आज्ञा दी।

अप्सराएँ जानती थीं कि पुरुरवा चंद्रवंश के प्रतापी राजा है और जब-जब देवताओं की विजय के लिए युद्ध करना होता है तब-तब इंद्र इन्हीं को, बड़े आदर के साथ बुलाकर अपना सेनापति बनाते हैं।

इस बात से उन्हें बड़ा संतोष हुआ और वे उत्सुकता से उनके लौटने की राह देखने लगी। उधर राजा पुरुरवा ने बहुत शीघ्र ही राक्षसों को मार भगाया और उर्वशी को लेकर वह अप्सराओं की ओर लौट चले।

रास्ते में जब उर्वशी को होश आया और उसे पता लगा कि वह राक्षसों की कैद से छूट गई है, तो वह समझी कि यह काम इंद्र का है। परंतु चित्रलेखा ने उसे बताया कि वह राजा पुरुरवा की कृपा से मुक्त हुई है। यह सुनकर उर्वशी ने सहसा राजा की ओर देखा, उसका मन पुलक उठा। राजा भी इस अनोखे रूप को देखकर मन-ही-मन उसे सराहने लगे।

अप्सराएँ उर्वशी को फिर से अपने बीच में पाकर बड़ी प्रसन्न हुई और गदगद होकर राजा के लिए मंगल कामना करने लगीं, "महाराज सैंकड़ों कल्पों तक पृथ्वी का पालन करते रहें।" इसी समय गंधर्वराज चित्ररथ वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने बताया कि जब इंद्र को नारद से इस दुर्घटना का पता लगा, तो उन्होंने गंधर्वों की सेना को आज्ञा दी, "तुरंत जाकर उर्वशी को छुड़ा लाओ।" वे चले लेकिन मार्ग में ही चारण मिल गए, जो राजा पुरुरवा की विजय के गीत गा रहे थे। इसलिए वह भी उधर चले आए। पुरुरवा और चित्ररथ पुराने मित्र थे। बड़े प्रेम से मिले। चित्ररथ ने उनसे कहा, "अब आप उर्वशी को लेकर हमारे साथ देवराज इंद्र के पास चलिए। सचमुच आपने उनका बड़ा भरी उपकार किया है।" लेकिन विजयी राजा ने इस बात को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने इसे इंद्र की कृपा ही माना। बोले, "मित्र! इस समय तो मैं देवराज इंद्र के दर्शन नहीं कर सकूँगा। इसलिए आप ही इन्हें स्वामी के पास पहुँचा आइए।"

View on Amazon View on AbeBooks View on Kobo View on B.Depository View on eBay View on Walmart

एक बार देवलोक की परम सुंदरी अप्सरा उर्वशी अपनी सखियों के साथ कुबेर के भवन से लौट रही थी। मार्ग में केशी दैत्य ने उन्हें देख लिया और तब उसे उसकी सखी चित्रलेखा सहित वह बीच रास्ते से ही पकड़ कर ले गया।

यह देखकर दूसरी अप्सराएँ सहायता के लिए पुकारने लगीं, "आर्यों! जो कोई भी देवताओं का मित्र हो और आकाश में आ-जा सके, वह आकर हमारी रक्षा करें।" उसी समय प्रतिष्ठान देश के राजा पुरुरवा भगवान सूर्य की उपासना करके उधर से लौट रहे थे। उन्होंने यह करूण पुकार सुनी तो तुरंत अप्सराओं के पास जा पहुँचे। उन्हें ढाढ़स बँधाया और जिस ओर वह दुष्ट दैत्य उर्वशी को ले गया था, उसी ओर अपना रथ हाँकने की आज्ञा दी।

अप्सराएँ जानती थीं कि पुरुरवा चंद्रवंश के प्रतापी राजा है और जब-जब देवताओं की विजय के लिए युद्ध करना होता है तब-तब इंद्र इन्हीं को, बड़े आदर के साथ बुलाकर अपना सेनापति बनाते हैं।

इस बात से उन्हें बड़ा संतोष हुआ और वे उत्सुकता से उनके लौटने की राह देखने लगी। उधर राजा पुरुरवा ने बहुत शीघ्र ही राक्षसों को मार भगाया और उर्वशी को लेकर वह अप्सराओं की ओर लौट चले।

रास्ते में जब उर्वशी को होश आया और उसे पता लगा कि वह राक्षसों की कैद से छूट गई है, तो वह समझी कि यह काम इंद्र का है। परंतु चित्रलेखा ने उसे बताया कि वह राजा पुरुरवा की कृपा से मुक्त हुई है। यह सुनकर उर्वशी ने सहसा राजा की ओर देखा, उसका मन पुलक उठा। राजा भी इस अनोखे रूप को देखकर मन-ही-मन उसे सराहने लगे।

अप्सराएँ उर्वशी को फिर से अपने बीच में पाकर बड़ी प्रसन्न हुई और गदगद होकर राजा के लिए मंगल कामना करने लगीं, "महाराज सैंकड़ों कल्पों तक पृथ्वी का पालन करते रहें।" इसी समय गंधर्वराज चित्ररथ वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने बताया कि जब इंद्र को नारद से इस दुर्घटना का पता लगा, तो उन्होंने गंधर्वों की सेना को आज्ञा दी, "तुरंत जाकर उर्वशी को छुड़ा लाओ।" वे चले लेकिन मार्ग में ही चारण मिल गए, जो राजा पुरुरवा की विजय के गीत गा रहे थे। इसलिए वह भी उधर चले आए। पुरुरवा और चित्ररथ पुराने मित्र थे। बड़े प्रेम से मिले। चित्ररथ ने उनसे कहा, "अब आप उर्वशी को लेकर हमारे साथ देवराज इंद्र के पास चलिए। सचमुच आपने उनका बड़ा भरी उपकार किया है।" लेकिन विजयी राजा ने इस बात को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने इसे इंद्र की कृपा ही माना। बोले, "मित्र! इस समय तो मैं देवराज इंद्र के दर्शन नहीं कर सकूँगा। इसलिए आप ही इन्हें स्वामी के पास पहुँचा आइए।"

More books from Sai ePublications

Cover of the book The Life-Story of Insects by Kalidas
Cover of the book The Coast of Chance by Kalidas
Cover of the book The Book of Psalms by Kalidas
Cover of the book Pinjar Aur Prem Ka Mulya by Kalidas
Cover of the book Mansarovar - Part 1 (Hindi) by Kalidas
Cover of the book Chamatkar Aur Beti Ka Dhan (Hindi) by Kalidas
Cover of the book Comic Arithmetic by Kalidas
Cover of the book The Farmer's Boy by Kalidas
Cover of the book Beton Wali Vidhwa Aur Maa (Hindi) by Kalidas
Cover of the book Manovratti Aur Lanchan (Hindi) by Kalidas
Cover of the book Ramcharitmanas (Hindi) by Kalidas
Cover of the book God and My Neighbour by Kalidas
Cover of the book Mansarovar - Part 5 (Hindi) by Kalidas
Cover of the book The Golden Goose by Kalidas
Cover of the book The Most Interesting Stories of All Nations by Kalidas
We use our own "cookies" and third party cookies to improve services and to see statistical information. By using this website, you agree to our Privacy Policy