Author: | Rabindranath Tagore | ISBN: | 6610000017805 |
Publisher: | Sai ePublications | Publication: | May 4, 2017 |
Imprint: | Sai ePublications | Language: | Hindi |
Author: | Rabindranath Tagore |
ISBN: | 6610000017805 |
Publisher: | Sai ePublications |
Publication: | May 4, 2017 |
Imprint: | Sai ePublications |
Language: | Hindi |
किसी को यह नहीं समझना चाहिए कि अनार्यों ने हमें कुछ नहीं दिया। वास्तव में प्राचीन द्रविड़ लोग सभ्यता की दृष्टि से हीन नहीं थे। उनके सहयोग से हिंदू सभ्यता को रूप-वैचित्र्य और रस-गांभीर्य मिला। द्रविड़ तत्व-ज्ञानी नहीं थे। पर उनके पास कल्पना शक्ति थी, वे संगीत और वस्तुकला में कुशल थे। सभी कलाविद्याओं में वे निपुण थे। उनके गणेश-देवता की वधू कला-वधू थी। आर्यों के विशुद्ध तत्वज्ञान के साथ द्रविड़ों की रस-प्रवणता और रूपोद्भाविनी शक्ति के मिलन से एक विचित्र सामग्री का निर्माण हुआ।....
किसी को यह नहीं समझना चाहिए कि अनार्यों ने हमें कुछ नहीं दिया। वास्तव में प्राचीन द्रविड़ लोग सभ्यता की दृष्टि से हीन नहीं थे। उनके सहयोग से हिंदू सभ्यता को रूप-वैचित्र्य और रस-गांभीर्य मिला। द्रविड़ तत्व-ज्ञानी नहीं थे। पर उनके पास कल्पना शक्ति थी, वे संगीत और वस्तुकला में कुशल थे। सभी कलाविद्याओं में वे निपुण थे। उनके गणेश-देवता की वधू कला-वधू थी। आर्यों के विशुद्ध तत्वज्ञान के साथ द्रविड़ों की रस-प्रवणता और रूपोद्भाविनी शक्ति के मिलन से एक विचित्र सामग्री का निर्माण हुआ।....